ये आँखें कुछ बोलती हैं
आशाओं की चाह लिए
ह्रदय में कुछ उत्साह लिए
मन के मयूर पंख खोलती हैं
ये आँखें कुछ बोलती हैं।
आपने मीत की आह में
उसके मिलन की चाह में
सलोने से स्वप्न संजोती हैं
ये आँखें कुछ बोलती हैं।
क्या कुछ खोया हमने
क्या कुछ पाया इस जीवन में
यहीं रातों दिन सोचती हैं
ये आँखें कुछ बोलती हैं।
हिमालय है एक पर्वत
जो रहता है भारत के ऊपर
एक मीत था मेरा
वहीँ डाल दिया डेरा
ऐसे ही कुछ राज खोलती हैं
ये आँखें कुछ बोलती हैं।
उससे बिछुड़ के टूट कर
अपनों से फिर रूठ कर
मन जोड़ती हैं
ये आँखें कुछ बोलती हैं।
सम्प्रति:- कुँवर रणविजय सिंह
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