"लज्जा{Lajja}" की समीक्षा नारीवादी नजरिये से

लज्जा



6 दिसम्बर 1992 । भारतीय उपमहाद्वीप में काला दिन। उस दिन BJP ,RSS और VHP के कारसेवकों ने चार सौ साल पुराने इतिहास को   मिट्टी  में मिला दिया। शाम होते-2 बाबरी मस्जिद का तीसरा ग़ुम्बद  ढहा दिया गया, तब तक भारत के भोपाल ,कलकत्ता ,मुम्बई सहित पूरा दक्षिण एशिया दंगों की आग में झुलस उठा। एक धर्मनिरपेक्ष राज्य की यह विडम्बना ही थी कि मुम्बई में शिवसैनिकों  ने "वोटर लिस्ट" को घर-2 ले जाकर मुसलमानों को मारा। हालाँकि  उसी शाम तक बंगलादेश के  हिंदुओं का, जिनका राम और बाबरी मस्जिद से दूर-दूर तक कोई नाता  न था, उनका नरसंहार ( दंगा नहीं ) शुरू हुआ। जमायत-ए-इस्लामी के लड़ाके हिंदुओं के घर-घर जाकर तोड़ फोड़ करने के बाद सबकुछ लूटकर घर जला देते थे और हिन्दू लड़कियों को उठाकर ले जाते थे और रेप करने के बाद मार  डालते थे। बंगलादेश  में पति के सामने पत्नी का ,भाई के सामने बहन  का और बाप के सामने बेटी  बलात्कार किया गया यहाँ  तक कि अपने मुस्लिम दोस्तों के यहाँ शरण लेने वाली लडकियां भी बची। कुछ उसी तरह सुनियोजित ढंग से हो रहा था  जैसे भारत में मुस्लिमों के साथ हुआ लेकिन दोनों जगह धर्म के इन हैवानों  शिकार औरतें ही बनीं। वैसे तो  किसी भी धर्म में स्त्रियाँ  ही सबसे  धार्मिक(अन्धविश्वासी?) होती हैं लेकिन उन धर्मों के मौलवी ,मुल्लाओं और हवस के पुजारिओं का शिकार भी यहीं महिलाएं  ही बनती हैं।
शायद आडवाणी और अशोक सिंघल जी शौर्य दिवस मानाने में इतने लुप्त हो गए की वे  समझ ही नहीं पाए   कि  जिन देशों में हिन्दू  अल्पसंख्यक हैं उनका क्या  हश्र होगा? क्योंकि वर्तमान में  मुस्लिम समुदाय औरों से कहीं ज्यादा कट्टर है।और हुआ  भी यहीं राम के भक्तों के किये की सजा बंगलादेश के उन हिंदुओं और  उनकी मासूम   बच्चियों को भुगतनी पड़ी जिनका भारत या यहाँ के मंदिर- मस्जिद   से कोई लेना-देना  था। जमायत-ए-इस्लामी और RSS के कारसेवकों को इतिहास कभी नहीं माफ़ करेगा और धिक्कार है बंगलादेश के उन कम्युनिस्टों पर जो अल्पसंख्यक हिंदुओं की रक्षा करने के बजाय जमायत-ए-इस्लामी के  कुत्ते बन गए।बहरहाल तस्लीमा जी की "लज्जा" पढने  के बाद  मेरा रोम-रोम सिहर  उठा है। हालाँकि  क़िताब लिखने के बाद तस्लीमा नसरीन को बंगलादेश  से निकाल दिया और पश्चिम बंगाल की प्रगतिशील वामपंथी सरकार ने इसे प्रकाशित  करने से रोक दिया। ये बड़ी ही हैरान करने वाली बात है कि बॉलीवुड में किसी डायरेक्टर ने इसपर फिल्म बनाने  जहमत नहीं उठाई। ख़ैर, सभी औरतों और लड़कियों  को यह यह किताब पढ़नी चाहिए जिससे उन्हें पता चले कि हर बार  धर्म का शिकार यहीं  आधी आबादी होती है।

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